संदीप देव, नई दिल्ली
अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए कश्मीरी पंडितों के पास वोट बैंक की ताकत नहीं होने की वजह से सरकार का रवैया भी उनके प्रति पूरी तरह उदासीन है! नहीं तो क्या कारण है कि वनधामा नरसंहार में मारे गए 23 कश्मीरी पंडितों की फाइल को जहां राज्य सरकार ने बंद कर दिया है, वहीं केंद्र सरकार उसकी जांच किसी भी एजेंसी से कराने को तैयार नहीं है! और तो और केंद्र सरकार तो इससे भी अनभिज्ञता जाहिर कर रही है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने वनधामा नरसंहार की फाइल बंद कर दी है! 25 जनवरी 1998 की रात सेंट्रल कश्मीर स्थित गंडरबल के वनधामा गांव में आतंकवादियों ने 23 कश्मीरी पंडितों को गोलियों से भून दिया था। इस घटना के बाद कश्मीर घाटी से नए सिरे से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया था। इस घटना पर कश्मीरी भाषा में बब(पिता) नामक फिल्म भी बनी थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। यह भी कहा जाता है कि विधु विनोद चोपड़ा की मिशन कश्मीर फिल्म भी इस घटना के एक हिस्से से प्रेरित थी।
घटना के दस साल बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस वर्ष जनवरी में इस केस की फाइल बंद कर दी। फाइल बंद करने का बचाव करते हुए गंडरबल के सब डिवीजनल पुलिस आफिसर शौकत अहमद ने कश्मीरी टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वालों की पहचान नहीं होने की वजह से वनधामा हत्याकांड की फाइल बंद कर दी गई है। हालांकि दैनिक जागरण ने एक कश्मीरी पंडित के जरिए सूचना के अधिकार कानून के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय से जब इस संबंध में जानकारी ली तो मंत्रालय का ढुलमुल रवैया पूरी तरह सामने आ गया। मंत्रालय ने जवाब (नं18012/9/08-के-1) दिया, वनधामा नरसंहार के संबंध में उसे जानकारी है, लेकिन इसमें शामिल लोगों या संगठन के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है। उसे इसकी भी सूचना नहीं है कि स्थानीय पुलिस ने इस केस को बंद कर दिया गया है। स्थानीय पुलिस जब इस मुकदमे को नहीं सुलझा सकी तो क्या सरकार सीबीआई जैसी जांच एजेंसी को यह केस सौंप सकती है? इस सवाल के जवाब में मंत्रालय ने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया नहीं! अब सवाल उठता है कि पुलिस द्वारा फाइल बंद करने के प्रति अनभिज्ञता जाहिर करने वाला गृह मंत्रालय आखिर सीबीआई को इसकी जांच क्यों नहीं सौंपना चाहता? इसका जवाब तलाशने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक रिपोर्ट काफी है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि 1989 से अब तक कश्मीर घाटी में 209 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई है, लेकिन एक हत्या के अलावा अन्य किसी भी मामले में किसी को सजा नहीं मिली। मानवाधिकार कार्यकर्ता एचएन.वांचू की हत्या में तीन विदेशी आतंकवादियों को सजा हुई थी। रिपोर्ट का दूसरा पहलू यह है कि कश्मीरी पंडितों की हत्या में यासीन मलिक, बिट्टा कराटे और जावेद अहमद मीर उर्फ नलका सहित 31 स्थानीय आतंकवादी पकड़े गए थे, जिनमें से सभी जमानत पर जेल से बाहर हैं।
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